Speaker of the Lok Sabha
संविधान के अनुच्छेद 93 के अनुसार लोकसभा को अपने सदस्यों में से एक अध्यक्ष (Speaker) चुनने का अधिकार है। लोकसभा के अध्यक्ष व् उपाध्यक्ष दोनों का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। वे इसके पूर्व भी स्वेच्छा से त्याग-पत्र दे सकते हैं।
- अध्यक्ष अपना त्याग-पत्र उपाध्यक्ष को तथा उपाध्यक्ष अपना त्याग-पत्र अध्यक्ष को देता है।
- अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष को लोकसभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प द्वारा अपने पद से हटाया जा सकता है। लेकिन अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को कम से कम 14 दिन पहले सूचित करना अनिवार्य है।
- अध्यक्ष की अनुपस्थिति की स्थिति में उपाध्यक्ष लोकसभा की अध्यक्षता करता है।
- लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को संसद द्वारा निर्धारित वेतन और भत्ते प्राप्त होंगे।
- अध्यक्ष अपने पद पर लोकसभा के भंग किये जाने पर भी उस समय तक बना रहता है जब तक नई लोकसभा की प्रथम बैठक न हो।
- लोकसभा अध्यक्ष लोकसभा के सदस्य के रूप में शपथ ग्रहण करता है, लोकसभा के अध्यक्ष रूप में नहीं, अतः लोकसभा के अध्यक्ष को कोई शपथ ग्रहण नही कराता है।
लोकसभा अध्यक्ष के अधिकार और कार्य (Rights and functions of the Speaker):
लोकसभा अध्यक्ष के अधिकार तथा कार्य निम्नलिखित हैं-
- वह लोकसभा की बैठक की अध्यक्षता करता है और सदन की कार्यवाही का संचालन करता है।
- वह सदन में शांति व्यवस्था बनाये रखने के लिए उत्तरदायी है।
- कोई सदस्य उसकी आज्ञा न माने व सदन की कार्यवाही में निरन्तर बाधा डाले, तो वह उसकी सदस्यता को निलम्बित (Suspend) भी कर सकता है।
- लोकसभा और राज्य सभा के संयुक्त अधिवेशन में लोकसभा अध्यक्ष ( Lok Sabha Speaker) ही अध्यक्षता करता है।
- कोई विधेयक धन-विधेयक (Money Bill) है अथवा नहीं, इस बात का निर्णय भी लोकसभा अध्यक्ष ही करता है।
- किसी प्रश्न पर सदन में पक्ष-विपक्ष के बराबर मत आने की स्थिति में वह ‘निर्णायक मत’ (Casting Vote) भी देता है।
- वह विभिन्न विधेयकों, प्रस्तावों आदि पर मतदान कराकर परिणाम घोषित करता है।
- प्रक्रिया सम्बन्धी सभी विवादों पर उसका निर्णय अन्तिम होता है।
- वह संसद की कुछ समितियों का पदेन सभापति होता है।
- वह सदन के सदस्यों के विशेष अधिकारों की रक्षा करता है।
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